ध्यान करते समय विचारों को कैसे रोकें?

अध्यात्म की राह पर चलने वाले खास कर इस बात से परेशान रहते हैं कि उनका मन बहुत भटकता है। मन में उठने वाले तरह-तरह के विचार उन्हें परेशान करते हैं। तो सवाल है कि उन विचारों को या फिर अपने मन को कैसे करें काबू? इस प्रश्न का उत्तर इतना महत्वपूर्ण नहीं हैं जितना की इस उत्तर का ध्यान के मध्य उपयोग कर पाना। 

आप ध्यान लगा रहे हैं और विचारों को दूर रखने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन विचार दूर नहीं जाते। यह हमारे मन का स्वभाव है, पर ऐसा लगता है कि आप अपने मन के साथ ज्यादती कर रहे हैं। इससे न तो मन ध्यान में लगता है और न ही किसी और काम में। 

आपके विचार गंध की तरह हैं – वे या तो खुशबूदार हैं या उनमें से बदबू आती है – यह उस पर निर्भर करता है कि आपके भीतर क्या बसा है। कुछ भी नया नहीं उगता। अगर आप अपने भीतर जमा उस चीज़ को अपने दिमाग में नहीं जाने देते, तो दिमाग अद्भुत रूप में काम करेगा। यह ऐसे काम भी कर सकता है, जिनकी आपने कभी कल्पना तक नहीं की थी। पर अभी तो यह आपके ही अपने कचरे से भरा है – यही तो संघर्ष है; तभी तो आप इसे रोकना चाहते हैं। 


अपने विचारों की चिंता न करें। सबसे महत्वपूर्ण ये है कि, इन्हें रोकने की कोशिश न करें। इन्हें उसी तरह घटने दें जैसे आपके गुर्दे काम कर रहे हैं। आपके गुर्दों में सब कुछ साफ नहीं है। आपके मस्तिष्क में भी सब कुछ साफ नहीं है – आपकी समस्या क्या है?

अगर आप ध्यान करते हुए, विचारों को हमेशा बनाए रखने का प्रयास करते हैं, तो वे नहीं आएँगे। अचानक, आपके मस्तिष्क जाम हो जाएगा। अपने विचारों को लेकर या उन्हें काबू करने को लेकर चिंता मत कीजिए। आज आपके भीतर क्या है, उसके आधार पर विचार तो उमड़ेंगे ही। इसका न कोई महत्व है और न ही कोई परिणाम है। आपको बस अपनी क्रिया करनी है। विचारों पर काम मत कीजिए। चाहे आप उन्हें हटाने की कोशिश कर रहे हों या यह कोशिश करें कि ध्यान के दौरान केवल 108 पवित्र विचार आएं, आप काम तो विचारों पर ही कर रहे हैं। किडनी अपना काम करेगी, लिवर अपना काम करेगा, मन अपना काम करता रहेगा, आप ध्यान कीजिए, बस क्रिया।

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