गणेश चतुर्थी को क्यों नहीं करने चाहिए चंद्र दर्शन?

              भगवान श्रीगणेश को सभी देवों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। गणेश जी विद्या और बुद्धि के दाता हैं। किसी भी शुभ कार्य से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है। इनके दर्शन मात्र से भक्तों के दुख दूर हो जाते हैं, लेकिन गणेश चतुर्थी को चंद्र दर्शन नहीं करने चाहिए क्योंकि इस रात्रि को चंद्र दर्शन करने से झूठे आरोप लगते हैं।


              इसका उल्लेख हमारे धर्मग्रंथों में मिलता है जिसमें बताया गया है कि गणेश चतुर्थी को चंद्र दर्शन क्यों नहीं करने चाहिए और अगर चंद्र दर्शन हो गए तो क्या हो सकता है। साथ ही भूलवश हुए चंद्र दर्शन के दोष का निवारण भी बताया गया है।

गणेश जी ने दिया था चंद्रमा को श्राप

              भगवान गणेश को गज का मुख लगाया गया तो वे गजवदन कहलाए और माता-पिता के रूप में पृथ्वी की सबसे पहले परिक्रमा करने के कारण अग्रपूज्य हुए। सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की पर चंद्रमा मंद-मंद मुस्कुराता रहा। उसे अपने सौंदर्य पर अभिमान था। गणेशजी समझ गए कि चंद्रमा अभिमान वश उनका उपहास करता है। क्रोध में आकर भगवान श्रीगणेश ने चंद्रमा को श्राप दे दिया कि आज से तुम काले हो जाओगे। चंद्रमा को अपनी भूल का अहसास हुआ। उसने श्रीगणेश से क्षमा मांगी तो गणेशजी ने कहा सूर्य के प्रकाश को पाकर तुम एक दिन पूर्ण हो जाओगे यानी पूर्ण प्रकाशित होंगे। लेकिन आज का यह दिन तुम्हें दंड देने के लिए हमेशा याद किया जाएगा। इस दिन को याद कर कोई अन्य व्यक्ति अपने सौंदर्य पर अभिमान नहीं करेगा। जो कोई व्यक्ति आज यानी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन तुम्हारे दर्शन करेगा, उस पर झूठा आरोप लगेगा। इसीलिए भाद्रपद माह की शुक्ल चतुर्थी को चंद्र दर्शन नहीं किया जाता।

भगवान श्रीकृष्ण पर लगा था चोरी का आरोप

              सत्राजित् नाम के एक यदुवंशी ने सूर्य भगवान को तप से प्रसन्न कर स्यमंतक नाम की मणि प्राप्त की थी। वह मणि प्रतिदिन स्वर्ण प्रदान करती थी। उसके प्रभाव से पूरे राष्ट्र में रोग, अनावृष्टि यानी बरसात न होना, सर्प, अग्नि, चोर आदि का डर नहीं रहता था। एक दिन सत्राजित् राजा उग्रसेेन के दरबार में आया। वहां श्रीकृष्ण भी उपस्थित थे। श्रीकृष्ण ने सोचा कि कितना अच्छा होता यह मणि अगर राजा उग्रसेन के पास होती। किसी तरह यह बात सत्राजित् को मालूम पड़ गई। इसलिए उसने मणि अपने भाई प्रसेन को दे दी। एक दिन प्रसेन जंगल गया। वहां सिंह ने उसे मार डाला। जब वह वापस नहीं लौटा तो लोगों ने यह आशंका उठाई कि श्रीकृष्ण उस मणि को चाहते थे। इसलिए सत्राजित् को मारकर उन्होंने ही वह मणि ले ली होगी। लेकिन मणि सिंह के मुंह में रह गई। जाम्बवान ने शेर को मारकर मणि ले ली। जब श्रीकृष्ण को यह मालूम पड़ा कि उन पर झूठा आरोप लग रहा है तो वे सच्चाई की तलाश में जंगल गए।
 
              वे जाम्बवान की गुफा तक पहुंचे और जाम्बवान से मणि लेने के लिए उसके साथ 21 दिनों तक घोर संग्राम किया। अंतत: जाम्बवान समझ गया कि श्रीकृष्ण तो उनके प्रभु हैं। त्रेता युग में श्रीराम के रूप में वे उनके स्वामी थे। जाम्बवान ने तब खुशी-खुशी वह मणि श्रीकृष्ण को लौटा दी तथा अपनी पुत्री जाम्बवंती का विवाह श्रीकृष्ण से करवा दिया। श्रीकृष्ण ने वह मणि सत्राजित् को सौंप दी। सत्राजित् ने भी खुश होकर अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया।

पौराणिक मान्यता

              ऐसा माना जाता है कि इस प्रसंग को सुनने-सुनाने से भाद्रपद मास की चतुर्थी को भूल से चंद्र-दर्शन होने का दोष नहीं लगता। चंद्र दर्शन होने पर करें इस मंत्र का जाप करें। इस मंत्र के प्रभाव से कलंक नहीं लगता है। जो मनुष्य झूठे आरोप-प्रत्यारोप में फंस जाए, वह इस मंत्र को जपकर आरोप मुक्त हो सकता है।

                                               सिंह: प्रसेन मण्वधीत्सिंहो जाम्बवता हत:।
                                               सुकुमार मा रोदीस्तव ह्येष: स्यमन्तक:।।

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