भगवान विश्वकर्मा संसार के पहले इंजीनियर है !

                 हिन्दू शास्त्रों के अनुसार भगवान विश्वकर्मा आज'के समय की भाषा में संसार के प्रथम एंगिननेर थे। भगवान विश्वकर्मा अपनी कला में माहिर थे। आज हम दुनिया में जितने भी कर्म अथवा कला कार्य देखते हैं उनका उत्थान भगवान विश्वकर्मा से ही हुआ है। उन्होंने ही सोने की लंका का निर्माण किया था जो की वास्तव में भगवान शिव ने माता पार्वती के लिए करवाया था।
 

                 हिन्दू धर्म में भगवान विश्वकर्मा को कला ऐवं सृजन के देवता मने गए है। भगवान विश्वकर्मा हस्तलिपि कलाकार है। अपनी कला से बेजान वस्तु में जान दाल देने की कला बहुत]कम लोगों में होती है जिसमें कि भगवान विश्वकर्मा परिपूर्ण है। वर्तमान समय में इस कला को इंजीनियरिंग इंजीनियर का नाम दिया जाता है।

                 विश्वकर्मा देव शिल्पी हैं। वे वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य हैं। मान्यता है कि देवताओं के लिए अस्त्र-शस्त्र, आभूषण और महलों का निर्माण विश्वकर्मा ने ही किया। इंद्र का सबसे शक्तिशाली अस्त्र वज्र भी उन्होंने ही निर्मित किया। हमारे धर्मशास्त्रों और ग्रन्थों  में विश्वकर्मा के पांच स्वरूपों और अवतारों का वर्णन है। विराट विश्वकर्मा, धर्मवंशी विश्वकर्मा, अंगिरावंशी विश्वकर्मा, सुधन्वा विश्वकर्मा और भृगुवंशी विश्वकर्मा।

                 ऋग्वेद में विश्वकर्मा सूक्त के नाम से 11 रचनाएँ  लिखी गई हैं, जिनके प्रत्येक मंत्र पर लिखा है ऋषि विश्वकर्मा भौवन देवता आदि। ऋग्वेद में ही विश्वकर्मा शब्द एक बार इंद्र व सूर्य का विशेषण बनकर भी प्रयुक्त हुआ है। प्राचीन काल में जितनी राजधानियां थीं, प्राय: सभी विश्वकर्मा की ही बनाई मानी जाती हैं। यहां तक कि सतयुग का ‘स्वर्ग लोक’, त्रेता युग की ‘लंका’, द्वापर की ‘द्वारिका’ और ‘हस्तिनापुर’ आदि जैसे प्रधान स्थान विश्वकर्मा द्वारा ही बनाए माने गए हैं। ‘सुदामापुरी’ भी विश्वकर्मा ने ही कुछ क्षणों में तैयार कर दिया था। 

                 पुष्पक विमान का निर्माण तथा सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोग में होने वाली वस्तुएं भी इनके द्वारा ही बनाई गई हैं। कर्ण का कुंडल, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, महादेव का त्रिशूल इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भी उनके हाथों ही हुआ। यदि आप धन-धान्य और सुख-समृद्धि की चाह रखते हैं, तो भगवान विश्वकर्मा की पूजा विशेष मंगलदायी होती है। हम यदि अपने प्राचीन ग्रंथों, उपनिषदों एवं पुराणों आदि का अवलोकन करें, तो पाएंगे कि आदि काल से ही विश्वकर्मा अपने विशिष्ट ज्ञान एवं विज्ञान के कारण न केवल मानव, बल्कि देवताओं के बीच भी पूजे जाते हैं।

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