भगवान शिव - पार्वती से जुड़ी विशेषता !
शिव परम पुरुषत्व के प्रतीक हैं, मगर उनके अर्द्धनारीश्वर रूप में उनका आधा हिस्सा एक पूर्ण विकसित स्त्री का है। इसका अर्थ यह है कि जब शिव ने पार्वती को अपने अंदर शामिल कर लिया, तो वह आनंदित हो गए यानी पुरुष-गुण और स्त्री-गुण का मिलन होता है, तो आप स्थायी रूप से परमानंद की अवस्था में रहते हैं। अगर आप बाहरी तौर पर ऐसा करने की कोशिश करते हैं, तो वह स्थायी नहीं होता और उसके साथ आने वाली मुसीबतों से जीवन में कभी पीछा नहीं छूटता।
पुरुष हो या स्त्री दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। ये सच है कि दोनों का अपना एक व्यक्तिगत जीवन होता है। मगर शादी है ही एक ऐसा गणित जो कि दो और दो एक क्र देता है। भगवान शिव का अर्ध नारी रूप इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है कि पत्नी का पति के जीवन में क्या स्थान है। शादी कभी भी कामुक इच्छाओं को पूरा करने का मार्ग नहीँ हो सकती। शादी काम पूर्ती का साधन नहीँ बल्कि काम नियंत्रण का साधन है।
दूसरी और देवी पार्वती का रूप है - एक आदर्श पत्नी और माँ। जी हाँ इसमें कोई दो राय नहीं कि देवी पार्वती को ये पूर्व ज्ञात था की विवाह के बाद कैलाश वास कितना कठिन होगा। परन्तु फिर भी उन्होंने अपनी गरिमा अपने पति के घर में समझी न कि पिता के घर में। इस बात का ध्यान हर विवाहित दम्पति को रखना चाहिए।
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