ऋषि मुनि आसन पर बैठकर क्यों करते थे तप ?

                 वैदिककाल से हमारे मुनि हमेशा आसन पर बैठकर तप किया करते थे। आसन को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है. भगवान भी आसन पर विराजमान होते हैं। आसन पर बैठने से पूजा का फल पूरी तरह से प्राप्त हो जाता है। बिना आसन के बैठने से सारी पूजा का फल देव इंद्र ले जाता है. आसन पर बैठने के धार्मिक महत्व हो सकते हैं लेकिन क्या आपको इसके वैज्ञानिक कारणों के बारे में भी पता है. जिसे वैदिक वाटिका आपको बता रही है। आसन कई तरह का हो सकता है- कंबल आसन, मृगछाल आसन, कपड़े आसन। 


                वैज्ञानिकों नें शोध के आधार पर आसन पर बैठने के कई फायदों के बारे में बताया है। जिस तरह से भारी बारिश की वजह से बादल आपस में टकराते हैं और उनसे बिजली गिरती है और धरती पर किसी वस्तु या धातु पर लगने के बाद पृथ्वी में वापस चली जाती है। ठीक एैसा ही आसन पर बैठने का रहस्य भी है।

                ब्रहमांड में अनंत शक्तियों और उर्जा का भंडार है, और धरती ब्राहमांड का ही हिस्सा है। इसलिए जब इंसान पूजा व मंत्रों का जाप करता है तब ये शक्तियां और उर्जा विद्युत चुंबकीय तरगों के जरिए प्रभावित होने लगती हैं। जो मानव शरीर के अंदर उर्जा और कुडलनी जागरण का काम करती है. बिना आसन पर बैठने से ये सारी उर्जा वापस धरती के अंदर चली जाती है।

वैज्ञानिकों के अनुसार आसन धरती और शरीर के बीच का संपर्क को तोड़ देता है जिससे ब्राहमांड की उर्जा और शक्तियां सीधा शरीर पर आने लगती हैं। और इंसान उर्जावान होने लगता है. आसन में बड़ी शक्ति होती है। इस लिए आसन को पूजा करने के बाद हमेशा साफ रखें। 

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