रुद्राक्ष से जुड़ी ये अनोखी बातें !

                रुद्राक्ष यानि रुद्र+अक्ष, रुद्र अर्थात भगवान शंकर व अक्ष अर्थात आंसू। भगवान शिव के नेत्रों से जल की कुछ बूंदें भूमि पर गिरने से महान रुद्राक्ष अवतरित हुआ। उसके बाद भगवान शिव की आज्ञा पाकर पेड़ों पर रुद्राक्ष फलों के रूप में प्रकट हो गए।


                ये पेड़ दक्षिण एशिया में मुख्यतः जावा, मलयेशिया, ताइवान, भारत एवं नेपाल में पाए जाते हैं। भारत में ये असम, अरुणांचल प्रदेश और देहरादून में पाए जाते हैं। रुद्राक्ष के फल से छिलका उतारकर उसके बीज को पानी में गलाकर साफ किया जाता है। इसके बीज ही रुद्राक्ष रूप में माला आदि बनाने में उपयोग में होती हैं।

रुद्राक्ष के प्रकार

मुख्य रूप से रुद्राक्ष इस प्रकार है। एकमुखी रुद्राक्ष भगवान शिव, दो मुखी श्री गौरी-शंकर, तीन मुखी तेजोमय अग्नि, चार मुखी श्री पंचदेव, पांच मुखी सर्वदेवमयी, छ: मुखी भगवान कार्तिकेय, सात मुखी प्रभु अनंत, आठ मुखी भगवान श्री गणेश, नौ मुखी भगवती देवी दुर्गा, दस मुखी श्री हरि विष्णु, तेरहमुखी श्री इंद्र और चौदह मुखी स्वयं हनुमानजी का रूप माना जाता है। इसके अलावा श्री गणेश व गौरी-शंकर नाम के रुद्राक्ष भी होते हैं।

धार्मिक कारण

शिव पुराण के अनुसार शिवजी ने ही इस सृष्टि का निर्माण ब्रह्माजी से करवाया है। इसलिए सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए शिवजी का पूजन सर्वश्रेष्ठ और सबसे सरल उपाय है। इसके साथ शिवजी के प्रतीक रुद्राक्ष को मात्र धारण करने से ही भक्त के सभी दुख दूर हो जाते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। रुद्राक्ष को चंद्र कारक रत्न माना गया है।एकाग्रता के लिए रुद्राक्ष धारण करने के निर्देश प्राचीन ग्रंथों में मिलते हैं।

वैज्ञानिक कारण

रुद्राक्ष एक तरह का फल है। इसमें अनेक औषधीय गुण उपस्थित है। रुद्राक्ष को धारण करने से या इसे पानी में कुछ घंटे रखकर उस पानी को ग्रहण करने से दिल से संबंधित बीमारियां दूर होती है व मानसिक रोगों के साथ ही नसों से जुड़े रोग भी खत्म होते हैं। साथ ही, याददाश्त व एकाग्रता में भी बढ़ोतरी होती है।

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