शिव के लिंग रूप की पूजा क्यों की जाती है ?

               भगवान शिव आदि और अंत के देवता है और इनका न कोई रूप और न ही आकार। आदि और अंत न होने से लिंग को शिव का निराकार रूप माना जाता है, जबकि उनके साकार रूप में उन्हें भगवान शंकर मानकर पूजा जाता है। शिव ही निराकार लिंग के रूप में पूजे जाते हैं। लिंग रूप में समस्त ब्रह्मांड का पूजन हो जाता है क्योंकि वे ही समस्त जगत के मूल कारण माने गए हैं। इसलिए शिव मूर्ति और लिंग दोनों रूपों में पूजे जाते हैं. 'शिव' का अर्थ है– 'परम कल्याणकारी' और 'लिंग' का अर्थ है – ‘सृजन’. शिव के वास्तविक स्वरूप से अवगत होकर जाग्रत शिवलिंग का अर्थ होता है प्रमाण। 


               वेदों में लिंग शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आता है। यह सूक्ष्म शरीर 17 तत्वों से बना होता है. मन, बुद्धि, पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां और पांच वायु. वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। 

               जब समुद्र मंथन के समय सभी देवता अमृत के आकांक्षी थे लेकिन भगवान शिव के हिस्से में भयंकर हलाहल विष आया। उन्होंने बड़ी सहजता से सारे संसार को समाप्त करने में सक्षम उस विष को अपने कण्ठ में धारण किया तथा ‘नीलकण्ठ’ कहलाए।  समुद्र मंथन के समय निकला विष ग्रहण करने के कारण भगवान शिव के शरीर का दाह बढ़ गया।  उस दाह के शमन के लिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा प्रारंभ हुई, जो आज भी चली आ रही है। 

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