एडिसन के ग्रामोफोन पर पहली बार गूंजा था संस्कृत श्लोक

                 इतिहास में कुछ ऐसी कहानियां छुपी हुई हैं जो भारत की न होकर फिर भी भारत से पूरी तरह जुड़ी हुई हैं। ऐसी ही एक कहानी है 19वीं सदी में ग्रामोफोन का अविष्कार करने वाले थॉमस अल्वा एडिसन और उसी वक़्त के मशहूर जर्मन स्कॉलर, प्रोफ़ेसर मैक्स मूलर की। मूलर ने ग्रामोफोन पर क्या रिकॉर्ड किया ये जानकार आपको भारतीय होने पर जरूर गर्व महसूस होगा।


                 एडिसन ने ग्रामोफोन का अविष्कार तो कर लिया था लेकिन वो चाहते थे कि दुनिया जब इसमें रिकॉर्ड आवाज़ को पहली बार सुने तो वो कोई स्पेशल आवाज़ होनी चाहिए। एडिसन ने इसके लिए चुना प्रोफ़ेसर मैक्स मूलर को। एडिसन ने इसके लिए बाकायदा एक समारोह का आयोजन किया जिसमें पूरे यूरोप और अमेरिका के विद्वान और वैज्ञानिक इकठ्ठा हुए। न्योता पाकर मैक्स मूलर भी जर्मनी से इंग्लैंड पहुंच गए।

                 एडिसन ने कार्यक्रम के उताबिक मूलर को स्टेज पर बुलाया और उन्होंने ग्रामोफोन के रिकॉर्ड पर कुछ शब्द कहे। एडिसन ने डिस्क चालू की और पूरा हॉल आश्चर्य से एक -दूसरे कि तरफ देखने लगा। फिर एडिसन की इस खोज के की प्रशंसा के लिए पूरा हॉल तालियों की आवाज़ से गूंज उठा।

                 तालियां जब थमीं तो मूलर ने स्टेज पर आकर सभी से पूछा कि जो उन्होंने कहा वो किसी को समझ आया क्या? सभी ने 'ना' में सर हिला दिया। मूलर ने इसके बाद बताया कि उन्होंने दरअसल जो रिकॉर्ड किया वो संस्कृत का एक श्लोक था। ये श्लोक ऋग्वेद का पहला सूक्त ‘अग्नि मीले पुरोहितं’ था।

                 कार्यक्रम के बाद जब मूलर से इसी श्लोक को चुनने की वजह पूछी गई तो उन्होंने कहा, वेद इंसानों द्वारा लिखे गए सबसे पहले ग्रंथ हैं और ये श्लोक ऋग्वेद का पहला सूक्त है। ये हमें याद दिलाता है कि हमने ज्ञान को कैसे प्राप्त किया और आज हम कहां पहुंचे हैं।

Comments