कुंडलिनी : मनुष्य को प्राप्त महानशक्ति को जाग्रत करना

               कुंडलिनी जाग्रत करने का अर्थ है मनुष्य को प्राप्त महानशक्ति को जाग्रत करना। यह शक्ति सभी मनुष्यों में होती है लेकिन सुप्त (सोई हुई) पड़ी रहती है। कुण्डली शक्ति उस ऊर्जा का नाम है जो हर मनुष्य में जन्मजात पाई जाती है। यह शक्ति बिना किसी भेदभाव के हर मनुष्य को प्राप्त है। इसे जगाने के लिए प्रयास या साधना करनी पड़ती है। ठीक उसी तरह जिस प्रकार एक बीज में वृक्ष बनने की शक्ति या क्षमता होती है। हर मनुष्य में शक्तिशाली बनने की क्षमता होती है।


               कुंडली जाग्रत करने के लिए साधक को शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्तर पर साधना करनी पड़ती है। जप, तप, व्रत-उपवास, पूजा-पाठ, योग आदि के माध्यम से साधक अपनी शारीरिक एवं मानसिक, अशुद्धियों, कमियों और बुराइयों को दूर कर सोई पड़ी शक्तियों को जगाता है।

               योग और अध्यात्म की भाषा में इस कुंडलीनी शक्ति का निवास रीढ़ की हड्डी के समानांतर स्थित छ: चक्रों में माना गया है। कोई जीव उन शक्ति केंद्रों तक पहुंच सकता है। इन छ: अवरोधों को आध्यात्मिक भाषा में षट्-चक्र कहते हैं। ये चक्र क्रमशः मूलधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्धाख्य चक्र, आज्ञाचक्र। साधक क्रमश: एक-एक चक्र को जाग्रत करते हुए। अंतिम आज्ञाचक्र तक पहुंचता है। मूलाधार चक्र से प्रारंभ होकर आज्ञाचक्र तक की सफलतम यात्रा ही कुण्डलिनी जाग्रत करना कहलाता है।

मूलाधार चक्रः यह गुदा और लिंग के बीच चार पंखुड़ी वाला 'आधार चक्र' है । आधार चक्र का ही एक दूसरा नाम मूलाधार चक्र भी है। यहां वीरता और आनन्द भाव का निवास है।

स्वाधिष्ठान चक्र: यह चक्र इसके बाद स्वाधिष्ठान चक्र लिंग मूल में है । उसकी छ: पंखुड़ी हैं । इसके जाग्रत होने पर क्रूरता,गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है ।

मणिपूर चक्रः नाभि में दस दल वाला मणिचूर चक्र है । यह प्रसुप्त पड़ा रहे तो तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह, आदि जमा रहते हैं ।

अनाहत चक्रः हृदय स्थान में अनाहत चक्र है । यह बारह पंखरियों वाला है। यह सोता रहे तो कपट, तोड़ -फोड़, कुतर्क, चिन्ता, मोह, दम्भ, अविवेक अहंकार से भरा रहेगा। जागृत होने पर यह सब दुर्गुण हट जायेंगे ।

विशुद्धख्य चक्रः कण्ठ में विशुद्धख्य चक्र यह सरस्वती का स्थान है । यह सोलह पंखुड़ी वाला है। यहां सोलह कलाएं विद्यमान हैं।

आज्ञा चक्रः भू्रमध्य में आज्ञा चक्र है, इस आज्ञा चक्र जाग्रत होने से यह सभी शक्तियां जाग पड़ती हैं ।

सहस्रार चक्रः सहस्रार की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में है । शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथियों से सम्बन्ध रैटिकुलर एक्टिवेटिंग सिस्टम का अस्तित्व है। यहां से जैवीय विद्युत का स्वयंभू प्रवाह उभरता है ।

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