अल्बर्ट आइंस्टीन से पहले भगवान शिव ने बताया था यह रहस्य

               प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन से पहले भगवान शिव ने कहा था कि 'कल्पना' ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है। यानी हम जैसी कल्पना और विचार करते हैं, वैसा ही हमारे साथ घटित होता है। भोलेनाथ ने इस आधार पर ध्यान की कई विधियों का विकास किया। भगवान शंकर के इसी दर्शन को दुनिया के लगभग हर धर्म के अनुयायी मानते हैं और उनके ग्रंथों में इस बात को अलग-अलग तरीके से बताया गया है।


               हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार वर्तमान समय से हजार वर्ष पूर्व वराह काल की शुरुआत में जब देवी-देवताओं ने मृत्युलोक यानी हमारी धरती पर कदम रखे, तब धरती पर हिमयुग था। मान्यता है कि इस समय भगवान शिव, कैलाश पर्वत पर निवास करते थे। भगवान विष्णु ने समुद्र और ब्रह्मा ने नदी के किनारे को अपना निवास स्थान बनाया।

               कहते हैं जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है, जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है, जबकि धरती पर कुछ भी नहीं था।


               वैज्ञानिकों के अनुसार तिब्बत धरती की सबसे प्राचीन भूमि है और पुरातनकाल में इसके चारों ओर समुद्र हुआ करता था। जब समुद्र हटा तो धरती प्रकट हुई और इस तरह धीरे-धीरे जीवन का निर्माण हुआ।सर्व प्रथम भगवान शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें आदि देव भी कहा जाता है। आदि का अर्थ 'प्रारंभ'।

               शिव को 'आदिनाथ' भी कहा जाता है। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है। इस 'आदिश' शब्द से ही 'आदेश' शब्द बना है। भगवान शिव के अलावा ब्रह्मा और विष्णु ने संपूर्ण धरती पर जीवन की उत्पत्ति और पालन का कार्य किया। सभी ने मिलकर धरती को रहने लायक बनाया और यहां देवता, दैत्य, दानव, गंधर्व, यक्ष और मनुष्य की आबादी को बढ़ाया।

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