मंदिरों में क्यों नहीं होती महिला पुजारिन ?

                भारत में अधिकांश मंदिरों की देखभाल पुरुष पुजारी करते हैं, बहुत कम मंदिरों में पुजारिनें होती हैं। ऐसा क्यों? शायद स्त्रियां पुरुषों की देखभाल कर रही हैं! इस देश में, केवल सार्वजनिक मंदिरों की देखभाल पुरुष करते थे, क्योंकि जनता को संभालने के लिए वे अधिक उपयुक्त थे। पर ऐसा कोई घर नहीं था, जहां कोई छोटा-मोटा मंदिर न हो, और इन निजी मंदिरों की देखभाल हमेशा स्त्रियां करती थीं। इसलिए उस अर्थ में, ज्यादातर मंदिरों के प्रबंधन और देखभाल का काम तो पुरुषों से अधिक स्त्रियों के पास था, और अब भी ऐसा ही है।


               इस देश में, केवल सार्वजनिक मंदिरों की देखभाल पुरुष करते थे, क्योंकि जनता को संभालने के लिए वे अधिक उपयुक्त थे। पर ऐसा कोई घर नहीं था, जहां कोई छोटा-मोटा मंदिर न हो, और इन निजी मंदिरों की देखभाल हमेशा स्त्रियां करती थीं। इसलिए उस अर्थ में, ज्यादातर मंदिरों के प्रबंधन और देखभाल का काम तो पुरुषों से अधिक स्त्रियों के पास था, और अब भी ऐसा ही है।

               अगर मैं एक साइकिल लाऊं, उन्हें एक पाना (स्पैनर) दूं और कहूं कि इस साइकिल के पुर्जे अलग-अलग करके उसे फिर से लगाओ, तो संभव है कि एक लड़का इसे एक लड़की के मुकाबले जल्दी और बेहतर तरीके से करे, लेकिन यह जरूरी नहीं है। अगर मैं उन्हें फूलों का ढेर देकर माला बनाने को कहूं, तो जरूरी तो नहीं मगर अधिक संभावना है कि लड़कियां इसे लड़कों से जल्दी और बेहतर करेंगी।

                 सभी परंपराएं और संस्कृतियां बड़ी संभावनाओं पर आधारित थीं, निश्चितताओं पर नहीं। इसलिए जब हम कहते हैं, “पुरुषों को यह करने दो, स्त्रियों को वह करने दो,” तो वह निश्चिततता नहीं होती, वह संभावना होती है कि अगर आप इस तरह के काम पुरुषों को देंगे, तो वे बेहतर तरीके से करेंगे और अगर उस तरह के काम स्त्रियों को देंगे, तो वे उसे बेहतर करेंगी। यह एक छोटा सा झुकाव है, कोई संपूर्ण तथ्य नहीं है लेकिन उस छोटे से झुकाव से बहुत फर्क पड़ता है। अगर पृथ्वी अपनी धुरी पर हर समय सीधी घूमती, तो सालों भर एक ही मौसम होता। लेकिन उस जरा से झुकाव की वजह से, कितनी सारी चीजें हो रही हैं! इसलिए जब हम पुरुष और स्त्री कहते हैं, तो हम उस जरा से झुकाव की बात करते हैं, उस झुकाव का लाभ उठाने की बात करते हैं। क्योंकि जीवन निश्चितताओं के साथ नहीं, हमेशा संभावनाओं के साथ काम करता है।

                 अगर हम आम की एक गुठली देखकर कहते हैं, “यह खूब मीठे फल देगा। इसे लगा देते हैं।” तो यह एक संभावना है, निश्चितता नहीं। आपके भौतिक अस्तित्व में कोई निश्चितता नहीं है। सब कुछ सिर्फ एक संभावना है। अगर आप निपुण हैं, तो संभावना को हकीकत में बदल सकते हैं।

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