हिन्दू धर्म अनुसार जीव विकासक्रम की उत्पत्ति का रहस्य !

              डार्विन की एक प्रसिद्ध किताब का नाम है Origin of Species (प्रजाति की उत्पत्ति)। इस किताब को डार्विन ने अपने थका देने वाले शोध और दुनियाभर के द्वीपों की प्रजातियों का अध्ययन करने के बाद लिखा था। इस किताब का ईसाई धर्म और उससे जुड़ी विचारधारा ने घोर विरोध किया, क्योंकि उनके अनुसार डार्विन का शोध धर्म के खिलाफ था। यह किताब जीव विकास क्रम का धर्म में उल्लेखित सिद्धांत का विरोध करती है। धर्म अनुसार ईश्वर ने मानव को मिट्टी से डायरेक्ट बनाया है। मानव क्रम विकास से नहीं बना।

उत्पत्ति-1

हम विज्ञान के क्रम विकास के सिद्धांत की बात करते हैं। विज्ञान मानता है कि मछली की उत्पत्ति धरती पर जीव विकासक्रम में पहली ऐसी बड़ी घटना थी जिसने जीव विकास के चक्र को और तेज कर दिया। सबसे पहले जलीय जीव (Aquatic Organism) आए।


समुद्र में जलीय जीव की उत्पत्ति में लाख-करोड़ साल का वक्त लगा, इससे पहले तो समुद्र में भिन्न भिन्न जलीय पेड़-पौधे थे। विज्ञान ने मछलियों की विशेष प्रजातियों को नाम दिया- chordates fish (अकशेरुकी)। हालांकि मछली की कई प्रजातियां मेरूदंडी थी, लेकिन यह कुछ अलग थीं जिसके कारण कछुओं की उत्पत्ति हुई। हिंदुओं ने इसे मत्स्य काल कहा है जबकि भगवान का मत्स्य अवतार हुआ था।

उत्पत्ति-2

मछलियों की विशेष प्रजातियों से ही क्रम विकास सिद्धांत के तहत कछुओं की भिन्न-भिन्न प्रजातियां विकसित हुईं। उन्हीं में एक को tetrapodes नाम दिया। यह अपने चार पैरों पर अच्छे से चल सकता था। जल और थल दोनों में ही इसकी गति अच्छी थी। इस तरह के जीवों को उभयचरी (Amphibian) कहा जाता है। हिंदुओं ने इसे कच्छप काल कहा है जबकि भगवान ने कछुए के रूप में जन्म लिया था।

उत्पत्ति-3

क्रम विकास के तहत फिर स्तनधारी जीवों (Mammalian) की उत्पत्ति हुई। यह कछु्आ ही था, जो वराह (सूअर) की उत्पत्ति का कारण बना। यह जल से मुक्त पहला स्तनधारी पशु था जिसके कारण धरती से डायनासोर का अंत हुआ। ये सूअर बहुत ही विशालकाय और खूंखार होते थे। हिंदुओं ने इसे वराह काल कहा है ‍जबकि भगवान ने वराह के रूप में अवतार लिया था।

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