हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवताओं की पूजा क्यों होती है ?

               अपार ज्ञान व रहस्यों से भरे वैदिक धर्म में अनेक कारण आज तक भी लोगों को ज्ञात नहीं है। मूलतः वैदिक धर्म में ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद नामक चार वेद हैं। तथा ब्रह्म पुराण, पद्म पुराण, विष्णु पुराण, वायु पुराण, भागवत पुराण, नारद पुराण, मार्कण्डेय पुराण, अग्नि पुराण, भविष्य पुराण, ब्रह्म वैवर्त पुराण, लिंग पुराण, वाराह पुराण, स्कन्द पुराण, वामन पुराण, कूर्म पुराण, मत्स्य पुराण, गरुड़ पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण ये 18 पुराण हैं।
 

               शास्त्रनुसार वैदिक धर्म में 33 कोटि देवता हैं। भ्रम के कारण लोग इन्हें 33 करोड़ मानते हैं, यह लोगो को बहुत बड़ी भूल है कि वह कोटि को यहां पर करोड़ मानते हैं। किसी भी वैदिक ग्रंथ अर्थात वेद, पुराण, गीता, रामायण, महाभारत या किसी अन्य धार्मिक ग्रन्थ में ये नहीं लिखा कि हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी देवताओं हैं और यही नहीं देवियों को कहीं भी इस गिनती में शामिल नहीं किया है। शास्त्रों में में 33 करोड़ नहीं बल्कि “33 कोटि” देवताओं का वर्णन हैं। ध्यान दें कि यहां “कोटि” शब्द का प्रयोग किया गया है, करोड़ का नहीं।

             वैदिक काल में कोटि का अर्थ करोड़ नहीं परंतु प्रकार अर्थात (त्रिदशा) हेतु गया है। कोटि का एक अर्थ “प्रकार” (तरह) भी होता है। शास्त्रनुसार ब्रहमाण्ड में तीन लोक कहे गए हैं पृथ्वी लोक, वायु लोक और आकाश लोक तथा इस त्रिलोक में 33 प्रकार (कोटी) के देवता इस प्रकार हैं

12 आदित्य हैं - अंशुमान, अर्यमन, इन्द्र, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषा, भग, मित्र, वरुण, विवस्वान व विष्णु

8 वसु हैं - आप, ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्यूष व प्रभाष

11 रुद्र हैं - शम्भु पिनाकी, गिरीश, स्थाणु, भर्ग, भव, सदाशिव, शिव, हर, शर्व व कपाली

2 अश्विनी कुमार हैं - नासत्य व द्स्त्र अतः कुल मिलकर 12+8+11+2=33 अर्थात सभी 33 कोटी देवताओं के लिए परमेश्वर ने अलग-अलग कार्य निहित किए हैं। अर्थात देवताओं के वर्गीकरण के आधार पर 33 प्रकार में विभाजित किया गया है न की 33 करोड़ रूपों में।

Comments