क्या सचमुच यूजर्स को गुमराह कर रहा है फेसबुक?
फ्री बेसिक्स और नेट न्यूट्रेलिटी को लेकर फेसबुक ने जिस तरह से अभियान चलाया है उसे लेकर लोगों के मन में कई सवाल भी उठे हैं जैसे- जीरो रेटिंग का नेट न्यूट्रेलिटी पर क्या असर होता है, क्या भारत में फ्री बेसिक्स पर प्रतिबंध लग सकता है?
यही प्रश्न पूरे विवाद की जड़ है। फेसबुक और एयरटेल जैसे ऑपरेटर कहते हैं कि वो नेट न्यूट्रेलिटी के पक्षधर हैं। साथ ही उनका कहना है कि जीरो रेटिंग नेट न्यूट्रेलिटी का उल्लंघन नहीं करता।यही प्रश्न पूरे विवाद की जड़ है। फेसबुक और एयरटेल जैसे ऑपरेटर कहते हैं कि वो नेट न्यूट्रेलिटी के पक्षधर हैं। साथ ही उनका कहना है कि जीरो रेटिंग नेट न्यूट्रेलिटी का उल्लंघन नहीं करता।फेसबुक ने फ्री बेसिक्स के लिए रिलायंस कम्यूनिकेशन से साझेदारी की है, जो फिलहाल ट्राई के निर्देश के बाद होल्ड पर है। मगर फेसबुक दूसरे ऑपरेटरों को भी आजमा रहा है।अगर आप एयरटेल पर फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं, तो उस पर 'फ्री फेसबुक ऑन एयरटेल' नाम का एक संदेश देखेंगे।
लेकिन अगर आप फेसबुक में ही किसी बाहरी लिंक जैसे यूट्यूब के किसी वीडियो पर क्लिक करते हैं, तो वो आपको दिखाएगा कि आप 'मुफ्त जोन' छोड़कर जा रहे हैं और इसके लिए आपसे शुल्क वसूला जाएगा। यही है जीरो रेटिंग समझौता।
ट्राई के चेयरमैन ने 31 दिसंबर को कहा था कि उन्हें फ्री बेसिक्स के समर्थन में 14 लाख फेसबुक यूजर्स की टिप्पणियां मिली हैं लेकिन 'यह वो नहीं था, जिसके लिए ट्राई ने कहा था।' इसके बाद फेसबुक की इस अभियान के लिए आलोचना शुरू हो गई। आलोचकों ने उसे अपने यूजरों को गुमराह करने का आरोप लगाया। इसमें उन्होंने उनका जिक्र भी किया जिन्होंने यही मेल भाषा बदलकर भेजा था और कहा था कि वो फ्री बेसिक्स का समर्थन नहीं करते।
कई लोग फ्री बेसिक्स के खिलाफ हैं और क्यों? कई नागरिक संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। सेव द इंटरनेट संगठन प्रमुखता से इसका विरोध कर रहा है। इसके अलावा इंटरनेट डेमोक्रेसी प्रोजेक्ट (www.internetdemocracy.in) और पेटीएम जैसी निजी कंपनियां भी इसके खिलाफ हैं।जोमेटो के संस्थापक दीपेंद्र गोयल ने ट्वीट कर कहा, 'फेसबुक अपने प्लेटफॉर्म का गलत इस्तेमाल कर लोगों को भ्रमित कर रहा है। अगर वो सरकार को फ्री बेसिक्स के लिए तैयार कर लेते हैं, तो वो सरकार से भी ज्यादा शक्तिशाली बन सकते हैं।"
यही प्रश्न पूरे विवाद की जड़ है। फेसबुक और एयरटेल जैसे ऑपरेटर कहते हैं कि वो नेट न्यूट्रेलिटी के पक्षधर हैं। साथ ही उनका कहना है कि जीरो रेटिंग नेट न्यूट्रेलिटी का उल्लंघन नहीं करता।यही प्रश्न पूरे विवाद की जड़ है। फेसबुक और एयरटेल जैसे ऑपरेटर कहते हैं कि वो नेट न्यूट्रेलिटी के पक्षधर हैं। साथ ही उनका कहना है कि जीरो रेटिंग नेट न्यूट्रेलिटी का उल्लंघन नहीं करता।फेसबुक ने फ्री बेसिक्स के लिए रिलायंस कम्यूनिकेशन से साझेदारी की है, जो फिलहाल ट्राई के निर्देश के बाद होल्ड पर है। मगर फेसबुक दूसरे ऑपरेटरों को भी आजमा रहा है।अगर आप एयरटेल पर फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं, तो उस पर 'फ्री फेसबुक ऑन एयरटेल' नाम का एक संदेश देखेंगे।
लेकिन अगर आप फेसबुक में ही किसी बाहरी लिंक जैसे यूट्यूब के किसी वीडियो पर क्लिक करते हैं, तो वो आपको दिखाएगा कि आप 'मुफ्त जोन' छोड़कर जा रहे हैं और इसके लिए आपसे शुल्क वसूला जाएगा। यही है जीरो रेटिंग समझौता।
ट्राई के चेयरमैन ने 31 दिसंबर को कहा था कि उन्हें फ्री बेसिक्स के समर्थन में 14 लाख फेसबुक यूजर्स की टिप्पणियां मिली हैं लेकिन 'यह वो नहीं था, जिसके लिए ट्राई ने कहा था।' इसके बाद फेसबुक की इस अभियान के लिए आलोचना शुरू हो गई। आलोचकों ने उसे अपने यूजरों को गुमराह करने का आरोप लगाया। इसमें उन्होंने उनका जिक्र भी किया जिन्होंने यही मेल भाषा बदलकर भेजा था और कहा था कि वो फ्री बेसिक्स का समर्थन नहीं करते।
कई लोग फ्री बेसिक्स के खिलाफ हैं और क्यों? कई नागरिक संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। सेव द इंटरनेट संगठन प्रमुखता से इसका विरोध कर रहा है। इसके अलावा इंटरनेट डेमोक्रेसी प्रोजेक्ट (www.internetdemocracy.in) और पेटीएम जैसी निजी कंपनियां भी इसके खिलाफ हैं।जोमेटो के संस्थापक दीपेंद्र गोयल ने ट्वीट कर कहा, 'फेसबुक अपने प्लेटफॉर्म का गलत इस्तेमाल कर लोगों को भ्रमित कर रहा है। अगर वो सरकार को फ्री बेसिक्स के लिए तैयार कर लेते हैं, तो वो सरकार से भी ज्यादा शक्तिशाली बन सकते हैं।"
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